खजाना है खाली, फिर भी घोषणाओं की लगादी झड़ी
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले बजट में वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने उस आम आदमी के लिए पूरी तरह दिल खोल कर खजाना लुटाने और उसे लुभाने की भरपूर कोशिश की है जिसके नाम पर वह दोबारा सत्ता में आई है। प्रणब दा ने जहां किसानों, दलितों और अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए कई योजनाओं में बड़े पैमाने पर धनराशि बढ़ाई है वहीं मध्यमवर्गीय आयकर दाता को भी उसकी आयकर छूट में दस हजार रुपये की राहत देकर उसे भी संतुष्ट करने की कोशिश की है जबकि महिलाओं को इस मद में मौजूदा 1.80 लाख की छूट सीमा को बढ़ाकर 1.90 लाख तथा वरिष्ठ नागरिकों की छूट सीमा 2.25 लाख से बढ़ाकर 2.40 लाख करने का प्रस्ताव रखा है। महंगाई के इस दौर में यह मामूली छूट सीमा ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ से अधिक कुछ नहीं है। वर्ष 2009-10 के बजट प्रस्तावों से यदि सबसे अधिक निराशा किसी को हुई है तो वह है कारपोरेट जगत। वित्तमंत्री ने औद्योगिक घरानों के कारपोरेट करों को पूर्ववत ही रखा है। वित्तमंत्री ने पूरे बजट में कृषि के साथ-साथ विभिन्न प्रमुख जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए धन आवंटन में जो फरागदिली दिखाई है वह कांग्रेस के चुनाव घोषणा-पत्र को अमलीजामा पहनाने की कवायद भी होती दिख रही है। पिछले चुनाव में सरकार के लिए वोट बटोरने का मूल मंत्र सिद्ध हुई राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) के लिए तो धन आवंटन में ढाई गुना वृद्धि कर उसे 39100 करोड़ तक कर दिया है। इसी तरह प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के रूप में एक नई योजना को पायलट आधार पर शुरू करने की घोषणा की गई है जिसके तहत 50 प्रतिशत से अधिक दलित आबादी वाले 1000गांवों के समग्र विकास का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। पिछले चुनाव में अल्पसंख्यक वोट बैंक के कांग्रेस के खाते में वापस आने से उत्साहित संप्रग सरकार ने अल्पसंख्यकों के विकास की योजनाओं को तरजीह देते हुए उसमें 74 प्रतिशत धन राशि की वृद्धि की है तथा अल्पसंख्यक छात्रों के लिए छात्रवृत्ति की नई योजनाएं भी शुरू करने का प्रावधान किया गया है। कांग्रेस के मुख्य चुनावी वायदे गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों को तीन रुपये किलो गेहूं या चावल देने को भी पूरा करने का प्रस्ताव रखा गया है। इसके लिए खाद्य सुरक्षा कानून में प्रावधान के लिए जल्दी ही लोकसभा में एक विधेयक पेश किया जाएगा। ये सारी लोक लुभावन घोषणाएं सुनने-पढ़ने में वास्तव में बड़ी अच्छी लग रही हैं लेकिन इसका एक कड़वा सच यह भी है कि वे सब पूरी कैसे होंगी? इनके लिए धन के स्रोत किस पहाड़ी से फूटेंगे?
संप्रग सरकार के दूसरे कार्यकाल के इस पहले बजट में न तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधारों की छाया दिखाई दे रही है और न ही इसमें मोंटेक सिंह अहलूवालिया की कोई छाप है। बल्कि यदि देखा जाए तो यह सीधे-सीधे वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी और कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी की ही प्रति छाया अधिक दिख रही है। प्रणब दा के बारे में यों भी यह बात प्रचलित है कि उन्हें न तो कोई दबाव में लेकर किसी तरह की रियायत हासिल कर सकता है और न ही उन्हें अपने फैसले से डिगा सकता है। यों वित्तमंत्री ने बजट तैयार करने से पूर्व जिस तरह औद्योगिक घरानों, कारपोरेट जगत तथा बड़े औद्योगिक संगठनों से परामर्श करते समय उनकी तमाम समस्याओं को सुना जरूर लेकिन बजट प्रस्तावों को अंतिम रूप उन्होंने अपने ही अंदाज में दिया। पूरे बजट में उन्होंने कृषि, रोजगार और ग्रामीण एवं आम आदमी को ही जिस तरह प्रमुखता दी है उससे यह भी आभास होता है कि प्रणब दा ने निकट भविष्य में ही हरियाणा, महाराष्ट्र व पश्चिम बंगाल आदि कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को भी पूरी तरह नजर में रखा है। स्वाधीनता के 62 वर्ष बाद यह पहला अवसर है जबकि दस लाख करोड़ से अधिक का बजट प्रस्तुत किया गया है। विश्व आर्थिक संकट से उबरने के लिए सरकार खर्च में भारी वृद्धि और उद्योग एवं व्यापार जगत को विभिन्न प्रकार के प्रोत्साहनों के कारण चालू वित्त वर्ष में सरकार का वित्तीय घाटा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 6.8 प्रतिशत तथा राजस्व घाटा 4.8 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है। इसके साथ ही 1.2 करोड़ नौकरियां देने का लक्ष्य निर्धारित कर उन्होंने बेरोजगारों में एक नई उम्मीद भी जगाई है। प्रधानमंत्री की सड़क योजना के तहत धन आवंटन में 59 प्रतिशत वृद्धि से भी रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। भूतपूर्व सैनिकों की एक रैंक-एक पैशन की लंबे समय से चली आ रही मांग को भी पूरा करने की दिशा में की गई घोषणा से 12 लाख से अधिक जवानों को फायदा होगा। वित्तमंत्री के बजट भाषण के साथ ही शेयर बाजार में आ रही गिरावट इस बात का प्रमाण थी कि कारपोरेट करों में कोई राहत न दिए जाने से बाजार में मायूसी है। लेकिन वित्तमंत्री ने यह कहकर उन्हें आश्वस्त भी करने की कोशिश की है कि बजट के बाद भी तो कई महत्वपूर्ण फैसले लिए जाते हैं। जहां तक रक्षा बजट का प्रश्न है निश्चित रूप से उसमें वृद्धि आवश्यक थी। देश की सीमाओं पर जो मौजूदा तनावपूर्ण स्थिति है तथा पड़ौस में बढ़ती आतंकवादी गतिविधियों के मद्देनजर बाह्य एवं आंतरिक सुरक्षा पर जिस तरह का दबाव है उसमें सेना के अत्याधुनिकीकरण की सख्त जरूरत है। पाकिस्तान में तालिबानों के खिलाफ चल रहे सैनिक अभियान से भी भारत के सुरक्षा इंतजामों को और पुख्ता करने की आवश्यकता है। विगत वर्ष की तुलना में रक्षा बजट को 34 प्रतिशत बढ़ाकर 1.41 लाख करोड़ करने का प्रस्ताव रखा गया है जबकि आंतरिक सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस विभाग के आधुनिकीकरण के लिए 430 करोड़ की राशि रखी गई है। प्रस्तावित बजट प्रावधानों से देश के विकास की नई तस्वीर तो बनती है बशर्ते उनके सही क्रियान्वयन की व्यवस्था हो। लाख टके का सवाल यही है कि जिस आम आदमी के लिए वित्तमंत्री ने यह कवायद की है उस आम आदमी को इसके लाभ कैसे मिल सकेंगे?
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